इससे अच्छी शुरूआत नहीं हो सकती क्योंकि मैं भारत के उस दिल यानी दिल्ली शहर के बारे में लिख रहा हूँ जिसका इतिहास,वर्तमान और भविष्य दोनों ही सुनहरे हैं. अगर हर हिन्दुस्तानी के सपनों का भारत कहीं बसता है तो वो दिल्ली ही है।
इतिहासः महाभारत काल (1400 ई.पू.) से दिल्ली पांडवों की प्रिय नगरी इन्द्रप्रस्थ के रूप में जानी जाती रही है। कुरूक्षेत्र के युध्द के बाद जब हस्तिनापुर पर जब पांडवों का शासन हुआ तो बडे भाई युधिष्ठिर ने भाईयों को खंडवाप्रस्थ का शासक बनाया जिसकी भूमि बहुत ही बियाबान और बेकार थी, तब मदद के लिये श्रीक्रष्ण नें इन्द्र को बुलावा भेजा, खुद युधिष्ठिर की मदद के लिये इन्द्र नें विश्वकर्मा को भेजा.विश्वकर्मा नें अपने अथक प्रयासों से इस नगर को बनाया और इसे इन्द्रप्रस्थ यानी (इन्द्र का शहर) नाम दिया.
दिल्ली का नाम राजा ढिल्लू के "दिल्हीका"(800 ई.पू.) के नाम से माना गया है,जो मध्यकाल का पहला बसाया हुआ शहर था,जो दक्षिण-पश्चिम बॉर्डर के पास स्थित था.जो वर्तमान में महरौली के पास है.यह शहर मध्यकाल के सात शहरों में सबसे पहला था.इसे योगिनीपुरा के नाम से भी जाना जाता है,जो योगिनी(एक् प्राचीन देवी) के शासन काल में था.
लेकिन इसको महत्व तब मिला जब 12वीं शताब्दी मे राजा अनंगपाल तोमर ने अपना तोमर राजवंश लालकोट से चलाया, जिसे बाद में अजमेर के चौहान राजा ने जीतकर इसका नाम किला राय पिथौरा रखा.1192 में जब प्रथ्वीराज चौहान मुहम्मद गौरी से पराजित हो गये थे, 1206 से दिल्ली सल्तनत दास राजवंश के नीचे चलने लगी थी.
इन सुल्तानों मे पहले सुल्तान कुतुबुद्दीन ऐबक जिसने शासन तंत्र चलाया इस दौरान उसने कुतुब मीनर बनवाना शुरू किया जिसे एक उस शासन काल का प्रतीक माना गया है,
इसके बाद उसने कुव्वत-ए-इस्लाम नामक मस्जिद भी बनाई जो शायद सबसे पहली भी थी.
अब शासन किया खिलजी राजवंश(पश्तून) ने जो दूसरे मुस्लिम शासक थे जिन्होने दिल्ली की सल्तनत पर हुकुमत चलायी,इख्तियार उद्दीन मुहम्मद बिन बख्तियार खिलजी और मुमलक राजवंश चलाने वाले जलाल उद्दीन फ़िरुज खिलजी ने 1290 से 1320 तक खिलजी राजवंश चलाया.
1321 से एक और राजवंश चला जो तुगलक राजवंश के नाम से जाना जाता है,जो मुस्लिम समुदाय तुर्क से मानी जाती है उसमें गियाथ अल बिन तुगलक और उसके बेटे ने जो कामयाब शासक भी था जिसका नाम मुहम्मद बिन तुगलक था ने सफ़लता से शासन किया,उसके बाद उसके भतीजे फ़िरोज शाह तुगलक ने भी राज किया लेकिन 1388 में उसकी म्रत्यु के बाद तुगलक राजवंश का पतन होने लगा.
उसके बाद 1414 से 1451 तक सैयद राजवंश भी चला फ़िर उसके बाद 1451 से लोधी राजवंश चला जो क्रमशः बाहलुल लोधी,सिकंदर लोधी और इब्राहिम लोधी ने सन 1526 तक दिल्ली सल्तनत पर राज किया,
दौलत खान लोधी के बुलावे पर बाबर जो एक मुगल था उसने हिन्दुस्तान पर चढाई कर दी और लोधी वंश का पतन सन 1526 पानीपत की लडाई में कर दिया था.
1526 बाबर(जहीरूद्दीन मोहम्मद) के बाद 1530 में हुमांयु (नसीरुद्दीन अहमद) ने बाहडोर संभाली.
इनके बीच में सन 1540 में सूरी राजवंश हुआ जिसने इस देश पर सालों तक राज किया,1540 में शेरशाह सूरी के बाद 1545 में इस्लाम शाह सूरी और फ़िर फ़िरोज शाह सूरे,मुहम्मद शाह आदिल,इब्राहिम शाह सूरे,सिकंदरशाह सूरी और फ़िर आदिल शाक सूरी ने 1555-56 तक राज किया.
1555 में फ़िर से मुगल शासक हुमांयु ने 1556 तक शासन किया और उसके बाद महान सम्राट अकबर (जलालुद्दीन मोहम्मद ) ने सफ़लता पूर्वक शासन चलाया उन्होने दीन्-ए-इलाही धर्म भी चलाया.सन 1605 में जहाँगीर(नूरूद्दीन मोहम्मद) ने शासन किया और 1627 में शाहजहाँ(शियाबुद्दीन मोहम्मद) ने मुगल शासन संभाला, शाहजहाँ नें आगरा में विश्व विख्यात ताजमहाल भी बनवाया.
इसके बाद 1658 में औरंगजेब(मुहिउद्दीन मोहम्मद) और 1707 में शाह आलम प्रथम (मुअज्जम बहादुर) ने सन 1712 तक शासन किया.आखिरी मुगल बहादुर शाह जफ़र के बाद सन 1857 मे ब्रिटिश शासन के हुकुमत में शासन चने लगा, 1857 में ही कलकत्ता को ब्रिटिश भारत की राज धानी घोषित कर दिया गया लेकिन 1911 में फ़िर से दिल्ली को ब्रिटिश भारत की राजधानी बनाया गया.इस दौरान नयी दिल्ली क्षेत्र भी बनाया गया.
1947 में भारत की आजादी के बाद इसे अधिकारिक रूप में भारत की राजधानी घोषित कर दिया गया.
भाषाःवैसे तो सभी धर्मों के लोग मिलकर सदभाव से यहाँ रहते हैं लेकिन मुख्यतः हिन्दी,अंग्रेजी,पंजाबी और उर्दू बोलियाँ यहाँ बोली जाते हैं।
पर्यटनःतो चलो इंडिया गेट से ही शुरू करते हैं दिल्ली यात्रा- इंडिया गेट जिसे ऑल इंडिया वॉर मेमोरियल के नाम से भी जाना जाता है, ये राजपथ पर स्थित है.10 फ़रवरी 1921 को इसकी नींव 9000 के करीब युध्द के जवानों की याद में रखी गयी जो अफ़गानी युध्द और प्रथम विश्व युध्द के दौरान मारे गये थे.इसका निर्माण कार्य सन् 1931 में पूरा हुआ.1971 से अमर जवान ज्योति इन वीर योध्दाओं की याद में हमेशा से प्रज्ज्वलित रहती है
लोटस टैम्पल यानी बहाई मन्दिर-दक्षिण दिल्ली के कालका जी में 26 एकड़ में बना बहाई मन्दिर जिसे लोटस टैम्पल भी कहा जात है, दिसम्बर 1986 में बनकर तैयार हुआ, भारत के राष्ट्रीय पुष्प कमल और भारतीय सौन्दर्य का प्रतीक न केवल प्रतीक है बल्कि सर्वधर्म की एकता और शान्ति का प्रतीक है.इसमें एक बड़ा शान्त और प्रार्थना स्थल है जिसमें सभी धर्मों के लोग अपने-अपने इष्टदेव यां धर्म की प्रार्थना करते हैं यहाँ कोई भी मूर्ती यां किसी भी प्रकार का धर्म नहीं है. अपने इसी खास गुण के कारण यह दिल्ली और देश-विदेश में ताजमहल के बाद लोकप्रिय दर्शनीय स्थल है।
लाल किला- सन 1648 में इसे शाहजहाँ ने इसे बनवाया था,लाल पत्थरों से निर्मित यमुना के किनारे इस इमारत की भव्यता यां ये कहिये कि इसकी बनावट अदभुत है, रंगमहल और दीवाने-आम इसमें दर्शनीय है, पुराने शाही बाजार और अब इसका मुख्य द्वार लाहौरी दरवाजा है|
बाकी दिल्ली की जानकारी आगे के लेख में करूंगा।
क्रमश.......